गीतासार

गीतासार-गीताप्रेस 

पहले अध्याय का सार


सांसारिक मोह (attachment) के कारण ही मनुष्य "मैं क्या करूँ - मैं क्या न करूँ ?" इस दुविधा (confusion) में फंस जाता है इसलिए मोह (attachment) के वश ( control) में नही होना चाहिए l



दुसरे अध्याय का सार

शरीर का नाश हो जाता है परन्तु आत्मा का नाश नही हो सकता, इस ज्ञान को सदैव महत्व देना चाहिए और अपने कर्तव्य का  पालन करना चाहिए, इसी से सब दुःख मिट जायेंगे ।


 तीसरे अध्याय का सार

निष्कामभाव ( bina selfishness ke)  केवल दुआरों के हित के लिए अपने कर्तव्य का पालन करने से ही कल्याण हो जाता है ।


चौथे अध्याय का सार


कर्मो के बन्धन से छूटने के 2 उपाय हैं:

पहला : कर्मो के तत्त्व (secret) को अच्छे से समझ कर बिना किसी स्वार्थ (selfishness) से कर्म करना ।

दूसरा : तत्त्व ज्ञान का अनुभव ( experience) करना ।


पांचवें अध्याय का सार

मनुष्य को अच्छी बुरी परिस्थिति में सुखी-दुखी नही होना चाहिए क्योंकि इनसे सुखी दुखी होने वाला मनुष्य संसार से ऊँचा उठ कर सच्चे आनन्द का अनुभव (experience) नही कर सकता ।


छठे अध्याय का सार

कोई भी साधना का मार्ग लिया जाए पर मन में समता आनी आवश्यक है, समता के बिना कोई निर्विकल्प नही हो सकता ।




सातवें अध्याय का सार

सब कुछ भगवान का ही है, ये मान लेना ही सर्वोत्तम मार्ग है ।






8वें अध्याय का सार

जीवन के अंतिम समय में जो सोचा जा रहा हो उसी अनुसार अगला जन्म प्राप्त होता है, इसलिए जीवन में बार बार भगवान को ही याद करना चाहिए ताकि अगले ताकि आखिरी समय में भी भगवान ही याद आएं ।



9वें अध्याय का सार

सब मनुष्य  भगवान को पा सकते हैं, भले वे किसी भी वर्ण, संप्रदाय, देश के हों ।





10वें अध्याय का सार

संसार में जहाँ भी कुछ विशेष दिखे, सुन्दर दिखे, महत्वपूर्ण दिखे, शक्तिशाली दिखे, उसे भगवान का ही मानकर भगवान के ही बारे में सोचना चाहिए ।




11वें अध्याय का सार

इस समस्त जगत को भगवान का ही रूप मान कर हर मनुष्य भगवान के ही विराट (big) रूप के दर्शन कर सकता है ।


12वें अध्याय का सार

जो भक्त अपना शरीर, मन, बुद्धि के साथ अपने आप को भी भगवान को अर्पित कर देता है वो भगवान को बहुत प्यारा होता है ।


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13वें अध्याय का सार

केवल परमात्मा ही जानने के योग्य है, परमात्मा को जान लेने से मुक्ति हो जाती है ।


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14वें अध्याय का सार

संसार के बन्धन से छूटने के लिए सत्त्व रजस् 🔴 और  तमस रुपी इन प्रकृति के इन तीन गुणों से दूर हो जाना आवश्यक है ।



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15वें अध्याय का सार

इस संसार का मूल आधार परमात्मा ही है, ये मान कर केवल परमात्मा का भजन करना चाहिए ।


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16वें अध्याय का सार

बुरे कर्मो के कारण हम मनुष्य विभिन्न प्रकार की नरकों और 84 लाख जन्म मरण के  चक्कर में पड़ता है, इनसे छूटने के लिए बुरे कर्मो का त्याग करना आवशयक है।।

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17वें अध्याय का सार

मनुष्य जो भी श्रद्धा से शुभ काम करता है उसे परमात्मा का नाम लेकर ही करना चहिये ।


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18वें अध्याय का सार

गीता का सार भगवान की शरण में जाना है, जो केवल और केवल पूर्ण रूप से भगवान की शरण में जाता है भगवान उसे पूर्ण रूप से मुक्त कर देते हैं ।






















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