संतवाणी-गीताप्रेस

जैसे गंगा जी सागर से मिलने जाती हैं और रस्ते में जगत का पाप, दुःख का नाश करती हुई जाती हैं ऐसे ही सच्चे संत परमात्मा में लगते हैं और उनके संग से कितनो के पाप और दुःख दूर हो जाते हैं l

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१      कंचन, कामिनी, मान, बडाई, ईर्ष्या, आलस्य, प्रमाद, ऐश , आराम, भोग,
दुर्गुण और पाप को साधन में महान विघ्न समझकर इनसबका विषके तुल्य सर्वथा त्याग करना चाहिये  ।

२      ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, सद्गुण, सदाचार, सेवा, और संयमको अमृत के सामान
समझकर सदा सर्वदा इनका सेवन करना चाहिये ।


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१      भगवान् के नाम,रूप, गुण , प्रभाव, तत्त्व, रहस्य और चरित्रों को हर समय
याद करते हुए मुग्ध रहना चाहिये ।

२      भगवान् के गुण, प्रभाव, चरित्र तत्त्व और रहस्य की बातें सुनने, पढ़ने
और मनन करने से श्रद्धा होती है ।

३      एकान्त में भगवान् के आगे करुण भाव से रोते हुए स्तुति प्रार्थना करने
से भी श्रद्धा बढती है ।


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🔺हे नारायण! कम से कम यही मुझसे कह दो –

🔺क्यों तंग कर रहे हो, यहाँ से चले जाओ ?

🔺हे हरि!  इतने कठोर क्यों हो गये ?




 किसी का उपकार करके उसपर अहसान न करे, न किसी से कहे और न मनमे अभिमान 
ही करे; नहीं तो किया हुआ उपकार क्षीण हो जाता है ।

  अपने पर किये हुए उपकार को आजीवन कभी न भूले एवं अपकार करने वाले का बहुत भारी प्रत्युपकार करके भी अपने ऊपर उसका अहसान ही समझे ।



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भगवान के सच्चे भक्त को-

🌿 1. किसी को बुरा नही समझना चाहिए l

🌺 2. किसी की बुराई नही करनी चाहिए l

🌷 3. किसी की बुराई नही सोचनी चाहिए l

🌿 4. किसी में बुराई नही देखनी चाहिए l

🌺 5. किसी की बुराई नही कहनी चाहिए l 

🌷 6. किसी की बुराई नही सुननी चाहिए l

इन 6 बातों को पक्का करके इनका Strongly पालन करने से भक्त में खुद की भी कोई बुराई नही बचेगी l



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१      ईश्वर ज्ञानके सामान कोई ज्ञान नहीं ।

२      ईश्वर प्रभाव के सामान कोई प्रभाव नहीं ।

३      ईश्वर दर्शन के सामान कोई दर्शन नहीं ।

४      महापुरुषों के आचरण से बढ़कर कोई अनुकरणीय आचरण नहीं ।

५      भगवद्भावसे बढ़कर कोई भाव नहीं ।

६      समता से बढ़कर कोई न्याय नहीं ।

७      सत्य के सामान कोई तप नहीं ।

८      परमात्मा की प्राप्ति के सामन कोई लाभ नहीं ।

९      सत्संग के सामान कोई मित्र नहीं ।

१०कुसंग के सामान कोई शत्रु नहीं ।




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१      शरीर और संसार में जो आसक्ति है , वही सारे अनर्थों का मूल है, उसका 
सर्वथा त्याग करना चाहिये ।

२      कोई भी सांसारिक भोग खतरे से खाली नहीं, इसलिये उससे दूर रहना चाहिये ।


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दया के सामान कोई धर्म नहीं,
हिंसा के सामान कोई पाप नहीं, 
ब्रह्मचर्य के सामान कोई व्रत नहीं, 
ध्यान के सामान कोई साधन नहीं, 
शान्ति के सामान कोई 
सुख नहीं, 
ऋणके सामान कोई दुःख नहीं, 
ज्ञान के सामान कोई पवित्र नहीं,
ईश्वर के सामान कोई इष्ट नहीं, 
पापी के सामान कोई दुष्ट नहीं —
 ये एक-एक अपने –अपने 
स्थान पर अपने-अपने विषयमें सबसे बढ़कर प्रधान हैं ।



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मरुभूमि में जल दीखता है, वास्तव में है नहीं । अत: कोई भी समझदार 
मनुष्य प्यासा होते हुए भी वहाँ जलके लिये नहीं जाता । इसी प्रकार संसार के 
विषयों में भी सुख प्रतीत होता है, वास्तव में है नहीं । ऐसा जाननेवाले विरक्त 
विवेकी पुरुष की सुख के लिये उसमे कभी प्रवृत्ति नहीं होती ।




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🌿   अपने द्वारा किसी का अनिष्ट हो जाय तो सदा उसका हित ही करता रहे, जिससे कि अपने किये हुए अपराध को वह मनसे भूल जाय, यही इसका असली प्रायश्चित है । 

🌿  किसी के भी दुर्गुण-दुराचार का दर्शन, श्रवण, मनन, और कथन नहीं करना चाहिये। यदि उसमे किसी का हित हो तो कर सकते हैं; किन्तु मन धोखा दे सकता है, अत: खूब सावधानी के साथ विचार पूर्वक करना चाहिये ।



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💎    एकांत में मन को सदा यही समझाना चाहिये कि परमात्मा के चिंतन के सिवा 
किसी का चिंतन न करो; क्योंकि व्यर्थ चिंतन से बहुत हानि है । 

💎  अकर्मण्यता(कर्तव्यसे जी चुराना) महान हानिकारक है। पाप का प्रायश्चित है, किन्तु इसका नहीं । अकर्मण्यता का त्याग ही इसका प्रायश्चित है ।



🌅  ब्रह्ममुहूर्त में उठाना चाहिये । यदि सोते- सोते ही सूर्योदय हो जाय तो दिनभर उपवास और जप करना चाहिये ।

🌄   सोते समय भी भगवान् के नाम, रूपका स्मरण विशेषतासे करना चाहिये, जिससे शयन का समय व्यर्थ न जाय । शयनके समय को साधन बनाने के लिये सांसारिक
संकल्पोंके प्रवाहको भुलाकर भगवान् के नाम,रूप,गुण,प्रभाव, चरित्रका चिंतन करते हुए ही सोना चाहिये ।



🌿पवित्र साधन -🌷

🌷प्रतिदिन 1 लाख बार भगवान के नाम का जप,

🌿किसी का अहित/wrong न सोचना, न करना, न ही किसी के दोष देखना ।

🌷किसी की बुराई, निंदा न करना ।

🌿प्रतिदिन कुछ गरीब की कुछ सेवा करना ।

🌷प्रतिदिन तुलसी जी को जल चढ़ाना और भगवान को अर्पित किया हुआ तुलसी का पत्ता प्रसाद रूप में खाना ।

🌿सब में भगवान है ऐसा सोचना ।

🌷अपना सब कुछ भगवान को ही अर्पण करने का भाव रखना और रात को सोते समय और सुबह उठते समय अपना सब कुछ भगवान को अर्पण करने का भाव रखना ।

🌿घरवालों के उपकार, प्यार को ही याद रखना ।

🙏ये कुछ पवित्र साधन हैं जिन्हें जीवन में उतारना चाहिए ।

हनुमानप्रसाद पोद्दार जी,
गीताप्रेस🙏



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