रविदास जी के दोहे अर्थ सहित

रैदास कहै जाकै हृदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।



रविदास जी कहते हैं कि जिसके हृदय में रात दिन राम समाए रहते हैं, ऐसा भक्त भगवान के समान है। उस पल न तो क्रोध का असर होता है और न काम भावना उस पर हावी हो सकती है।


माटी को पुतरा कैसे नचत है ।। देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरत है ।। १ ।।
जब कछु पावै तब गरब करत है ।। माया गई तब रोवन लगत है ।। १ ।।
मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ।। बिनसि गया जाय कहुँ समाना ।।२।।
कहि रविदास बाजी जग भाई ।। बाजीगर सउ मोहे प्रीत बन आई ।।३।।

यह पाँच तत्व रुपी मिट्टी का पुतला ( मनुष्य ) मोह-माया में फँसकर सांसारिक कार्य-कलापों में नाच रहा है। यह मोह-माया के प्रभाव में फँसकर देखता, सुनता, बोलता और दौड़ता है । जब मनुष्य कुछ प्राप्त कर लेता है तब यह अभिमान करता है और जब माया चली जाती है, तब रोने लगता है अर्थात उसे अपने लुट जाने का अहसास होता है । सांसारिक विषय-वासनाओं के लोभ में पड़कर जीव मन, वचन और कर्म से माया का ही वीचार करता है। उसे यह भी ज्ञान नही कि मरने के बाद वह किस योनि में जाएगा । गुरू रविदास जी कहते हैं कि यह संसार बाजीगर की बाजी की तरह झुठा है, पर मेरी प्रीति तो इस खेल को करने वाले परमात्मा से लग गई है ।





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