- भगवान को अपना मानना योग है और भगवान से कुछ चाहना भोग है l
- बाहर का प्रकाश तो सूर्य करता है, भीतर का प्रकाश संत महात्मा करते हैं l
- “मुझे मिल जाये” यह भोग है “दूसरों को मिल जाये” यह योग है l
- योगी के द्वारा सबको सुख मिलता है और भोगी के द्वारा सबको दुःख ही मिलता है l
- मनुष्य शरीर मिल गया परन्तु परमात्मा की प्राप्ति नही हुई यही सबसे बड़ा दुःख होना चाहिए l
- शरीर का सदुपयोग तो केवल संसार की सेवा में ही है l
- पापी मनुष्य तो पशुओं से भी नीच है क्योंकि पशु तो अपनी 84 लाख योनियों को भोग लेने के बाद मनुष्य बनने वाला है और जो मनुष्य शरीर प्राप्त करके भी पाप कर रहा है वह फिर 84 लाख योनियों में जाने की तैयारी कर रहा है l
- मनुष्य शरीर केवल परमात्मा की प्राप्ति हेतु मिला है, परमात्मा की प्राप्ति करना ही मनुष्य का वास्तविक धर्म है l
- सुख भोगने के लिए स्वर्ग है और दुःख भोगने के लिए नरक है, और सुख दुःख दोनों से ऊँचा उठ कर अपना कल्याण करने के लिए मनुष्य शरीर है l
- मन की चंचलता मिटाने की इतनी आवश्यकता नही जितना मन को जो संसार प्यारा लगता है उस कामना को मिटाने की... जिससे मन की चंचलता अपने आप मिट जाएगी l
- भगवान हमारे हैं और जो कुछ भी भगवान ने हमे दिया वह भी भगवान का ही है l
- परमात्मा के सिवाय कोई मेरा नही है यही वास्तविक भक्ति है l
- संसार अधूरा है इसलिए अधुरा ही मिलता है, और परमात्मा पूरे हैं इसलिए पूरे ही मिलते हैं l
- जैसे मछली जल के बिना व्याकुल हो जाती है, ऐसे ही यदि हम भगवान के बिना व्याकुल हो जायें, तो भगवान के मिलने में समय नही लगेगा l
- जैसे गाय का दूध गाय के लिए नही है अपितु दूसरों के लिए है ऐसे ही भगवान की कृपा भी उनके लिए नही अपितु हम सबके लिए है l
- भगवान के भक्त को भगवान पहले दूर दिखते हैं, फिर पास दिखते हैं, फिर अपने अंदर दिखते हैं और फिर केवल भगवान ही दिखते हैं l
- जिसकी दृष्टि संसार पर रहती है वह कहता है... “भगवान कहाँ है?” ... जिसकी सदा भगवान पर रहती है वह कहता है ...”भगवान कहाँ नही है?”
- भगवान सबसे शक्तिशाली होने पर भी हमसे दूर होने का सामर्थ्य नही रखते l
- जैसे सूर्य प्रकट होता है... पैदा नही होता, ऐसे ही भगवान अवतार के समय प्रकट होते हैं, हमारी तरह पैदा नही होते l
- जब अंत:करण में संसार का महत्व है तब तक परमात्मा का महत्व समझ में नही आता l
- भगवान अपने भक्त का जितना आदर करते हैं उतना आदर करने वाला संसार में कोई नही, भक्त भगवान को जिस रूप में देखना चाहता है, भगवान उसके लिए वैसे ही बन जाते हैं l
- जैसे लालची व्यक्ति की दृष्टी धन पर ही रहती है ऐसे ही भक्त की दृष्टि सदा भगवान पर ही रहनी चाहिए l
- जो भगवान का सच्चा भक्त होता है वह कोई कर्म नही करता अपितु पूजा ही करता है क्योंकि प्रत्येक कर्म करते हुए उसकी भावना पूजा की रहती है l
- जिसका मन भगवान में लगा रहता है उसे सामान्य मनुष्य नही समझना चाहिए, क्यूंकि वह भगवान के दरबार का सदस्य है l
- याद रखो किसी का बुरा करोगे तो उसका बुरा हो या न हो तुम्हारा नया पाप अवश्य हो जायेगा l
The Vedas are not books, rather it is a knowledge originated in the hearts of Rishis.''Vedas are actually never created or destroyed. They merely get illuminated and de-illuminated but remain in Ishwar.''Adi Shankrachary Vedas are Apaurusheya (not created by humans)Kumarilbhatt
रामसुखदासजी सुविचार 3
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