गीताप्रेस सुविचार भाग 2

जैसा अन्न वैसी बुद्धि l जैसा संग वैसी बुद्धि l अतएव सज्जनका संग करो l आत्माका कल्याण करनेवाली पुस्तक पढ़ो और मेहनत करके अपने हकका खाओ l- 

मनुष्य संसारमें जितनी चीजोंको अपनी और अपने लिये मानता है उतना ही वह फँसता है l

एक संत ने कहा है -लोगोंके छिपे हुए ऐब जाहिर मत करो l इससे उसकी इज्जत तो जरूर घट जाएगी, पर तेरा तो ऐतबार ही उठ जाएगा l

चरित्र एक वृक्ष है, मान एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं, लेकिन असलीयत तो वृक्ष ही है।

ऊपर से हम अपनेको जितना अच्छा दिखाते हैं उससे कहीँ अच्छा हमें अन्दर से होना चाहिये l





शरीर-इंद्रियां-मन-बुद्धिसे अपना सम्बन्ध न रखना ही सच्चा एकान्त है l 

किसी तरह भगवान में लग जाओ, फिर भगवान अपने-आप सम्भालेंगे l

संसार अधूरा है, इसलिये अधूरा ही मिलता है और परमात्मा पूरे हैं, इसलिये पूरे ही मिलते हैं l

परमात्मा दूर नहीँ हैं, केवल उनको पानेकी लगनकी कमी है l

जीव जब लायक होता है, तब भगवान दर्शन देते हैं l जीव लायक नहीँ है, इसलिये भगवान दर्शन नहीँ देते l

आपकी प्रेरणाके बिना मन पाप नहीँ कर सकता है l मन स्वतन्त्र नहीँ है, मन नौकर है l आप अपने मन को सत्कर्ममें लगा दो l नहीँ तो, वह पाप करेगा l

.💖मन की एक बात बहुत अच्छी है, इसे जिस बात का चस्का लग जाये ये फिर उसे नही छोड़ता

💖 इसलिए इसे भगवान के नाम के कीर्तन का चस्का लगवा देना चाहिए l

💖हमेशा भगवान के नाम का कीर्तन और भगवान की कथा का गान होने से मन में अखंड आनंद बना रहता है
बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)।

No comments:

Post a Comment