साधन-कल्पतरु गीताप्रेस

🙏गीता- महिमा🙏

🙏यदि मनुष्य का जन्म पाकर किसी ने गीता का अभ्यास नहीं किया, गीता का अध्ययन नहीं किया, गीता के अनुसार अपना जीवन नहीं बनाया तो उसका जन्म व्यर्थ है |

🙏हमको ऐसा अभ्यास करना चाहिए कि हमारी वाणी में गीता, हमारे हृदय में गीता, हमारे कानों में गीता, हमारे कंठ में गीता, हमारे रोम-रोम में गीता और हमारे जीवन में गीता भरी हो—वह गीतामय हो |

🙏 जो ऐसा है, उसी के लिए हम कह सकते हैं कि उसका जीवन धन्य है, उसके माता-पिता धन्य हैं |

🙏          ऐसा पुरुष संसार में गीता का प्रचार करके अपना ही नहीं, हजारों-लाखों व्यक्तियों का उद्धार कर सकता है | आज तुलसीदासजी नहीं हैं, किन्तु उन्होंने रामायण की रचना करके संसार का बड़ा भारी उपकार किया है | उससे हजारों का उद्धार हो रहा है और जबतक वह रहेगी, उद्धार होता रहेगा |
   
🙏    इसी प्रकार जो मनुष्य गीता का अच्छी प्रकार अनुशीलन करके उसके अनुसार अपना जीवन बना लेता है, अपने जीवन को गीता के प्रचार में लगा देता है, उस पुरुष के द्वारा ही वस्तुतः संसार में गीता के भावों का प्रचार होता है | उसके द्वारा भविष्य में भी कितनों का उद्धार होता रहेगा, कहा नहीं जा सकता |

🙏साधन-कल्पतरु गीताप्रेस🙏






🔸🔸🔸साधन-कल्पतरु, गीताप्रेस🔸🔸🔸

🔸एकान्त में बैठकर नित्य यह विचार करे की

🔸 ईश्वर क्या है ?
🔸 मैं कौन हूँ ? 
🔸मैं कहाँ से आया हूँ ? 
🔸मैं क्या कर रहा हूँ ?
🔸 मुझे क्या करना चाहिये ?

 🔸इस प्रकार विचारकर दिन-पर-दिन अपनी उन्नति में अग्रसर होना चाहिये ।







🌹मनुष्य-शरीर पाकर यदि परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई, तो यह जन्म व्यर्थ ही गया । मानव जन्म का समय बहुत ही दामी है, इसको सोच-समझ कर बिताना चाहिये ।

🌹भगवत्प्राप्ति के जितने भी साधन है, उन सबमे उत्तम-से-उत्तम साधन है-भगवान को हर समय याद रखना । चाहे भक्ति का मार्ग हो, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का । सभी मार्गोंमें भगवान की स्मृति की ही परम आवश्यकता है ।

साधन-कल्पतरु, गीताप्रेस




🔸  यदि भूलसे बालक साँपको खिलौना समझकर पकड़ने दौड़ता है अथवा अग्निमें हाथ डालता है तो माता-पिता उसे तुरन्त बचा लेते है, साँप अथवा अग्निका स्पर्श नहीं करने देते; क्योंकि उनकी दृष्टि सदा उस अबोध बालक पर रहती है। 

 🔸 इसी तरह जो भक्त अपनेको अबोध शिशु की भाँति भगवान् के ऊपर छोड़ देता है, उसकी सँभाल भगवान् स्वयं करते है, उसे कभी गड्ढेमें गिरने नहीं देते, भूलसे वह गड्ढेकी ओर जाता भी है तो उसे खींचकर बचा लेते हैं।

 🔸इसलिए अबोध शिशु जिस प्रकार माताके परायण dependent होता है, उसी प्रकार तुम भगवान् के परायण dependent हो जाओ। फिर तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं होगा। 

 दैनिक कल्याण सूत्र गीताप्रेस,गोरखपुर






आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -९-

. मनुष्य संसार में लोग अपनी निन्दा करें, अपमान करें तो उससे अपने को खुश होना चाहिये और यदि लोग अपनी प्रशंसा करे, सम्मान करे तो उससे लज्जित होना चाहिये ।

कुसंग कभी न करे । मनुष्य सत्संग से तर जाता है और कुसंग से डूबता है ।

सत्संग में सुनी हुई बातों को एकान्त में बैठकर मनन करे और उनको काम में लाने की पूरी चेष्टा करे ।

पाप, भोग, आलस्य और प्रमाद-ये चार नरक में ले जानेवाले है । इनका सर्वथा त्याग करे ।

यह निश्चय कर ले की प्राण भले ही चले जाँय पाप तो कभी करना ही नहीं है । भारी-से-भारी  आपति आ जाय, तब भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिये और सदा ईश्वर को याद रखना चाहिये ।

मनुष्य जो चिंता, भय, शोक से व्याकुल होता है, इसमें प्रारब्ध हेतु नहीं है । सिवा मूर्खता के इनके होने का कोई अन्य कारण नही है । मनुष्य थोडा-सा विचार करके इस मूर्खता को हटा दे तो से सरलता से मिट सकते है ।.....



—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर




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