गीताप्रेस के सुविचार

हम भगवान से एक पल हेतु भी अलग नही हो सकते और संसार से हमेशा के लिए जुड़े भी नही रह सकते l

हम संसार की जिन जिन वस्तुओं को महत्व देते हैं वे हमे भगवान के साथ जुड़ने नही देंगी और न ही हमेशा के लिए हमारे साथ रहेगी l


प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहने की समझ सत्संग से ही आती है l
यदि अंदर सच्ची लगन नही हो तो सत्संग बातें पचती नही l

समय का सही उपयोग करने वाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल नही हो सकता l

विचार करें कि अब तक का जीवन में जो हमे समय मिला था उसमे हमने कितना भाग धर्म को दिया ?

भगवान के भक्त को अपने आप से ये प्रश्न करना चाहिए कि यदि मुझसे किसी को कोई लाभ नही हुआ, किसी की सेवा नही हुई, किसी के मन को शांति नही मिली तो मैं कैसा भक्त हुआ ?

जो पाप कर्मो से जितना बचता है वो उतना ही बड़ा परमात्मा का भक्त है l

भगवान का नाम जपते समय संसार के बारे में नही सोचना चाहिए और संसार के काम करते समय भी भगवान को नही भूलना चाहिए l


जैसे व्यापार/व्यवसाय वो बढिया होता है जिसमे अधिक लाभ हो ऐसे ही साधना वो बढिया होती है जिसमे अधिक मन भगवान में लगे l



जिसने बचपन से ही या युवावस्था में भक्ति नही कि वो बुढापे में क्या भक्ति करेगा ?

जैसे जैसे समाज में लोग केवल संसार और संसार में उपलब्ध भौतिक वस्तुओं को ही महत्व देना आरम्भ करते हैं और धर्म की उपेक्षा/अवहेलना (ignore) करते हैं, वैसे ही समाज में अशांति, अपराध, पाप बढ़ते हैं या यूं कहें कि धर्म की उपेक्षा/अवहेलना करेंगे तो अधर्म बढ़ता ही है l

जब तक हमे संसार ही अच्छा लगता रहेगा तब तक हमे परम शांति नही मिल सकती l

भक्त को सदा दूसरों की सेवा करने का लालक होना चाहिए, दूसरों को सुख देकर भक्त स्वयं वहाँ पहुँच जायेगा जहाँ उसको कभी कोई दुःख नही होगा l

दुःख आता ही इस हेतु है कि सुख की इच्छा ही छूट जाए l

जो अपने सुख से सुखी होता है, वो एक दिन दुखी ही होगा, जो दूसरों के सुख से सुखी होता है उसका दुःख एक दिन सदैव के लिए मिट जायेगा l

संसार से मोह करोगे तो दुखों का अंत नही है और भगवान से मोह करोगे तो सुखों का कोई अंत नही है l

सुख पाना चाहते हो तो पहले दूसरों को दुःख दो जैसे बीज बोयोगे वैसी ही फसल काटोगे l

जो दूसरों का बुरा करता है वो वास्तव में अपना ही बुरा कर रहा है और जो दूसरों का भला कर रहा है वो वास्तव में अपना ही भला कर रहा है l

दूसरे सुखो हों – जब व्यक्ति यह भाव रखेगा तो सब सुखो हो जायेंगे और स्वयं भी सुखी हो जायेगा परन्तु...
मैं सुखी हो जाऊं – जब व्यक्ति यह भाव रखेगा तो सब दुखी हो जायेंगे और व्यक्ति स्वयं भी दुखी हो जायेगा l

जो भी दुःख भोग रहा है वो आगे सुखो हो सकता है परन्तु जो दुःख दे रहा है वो कभी सुखी नही हो सकता l
भक्त को संसार में इसलिए रहना है ताकि वो संसार की सेवा कर सके न कि संसार से सुख ले l

जैसे किसी कम्पनी में अच्छा काम करने से कम्पनी का मालिक प्रसन्न हो जाता है ऐसे ही संसार की सेवा करने से संसार के मालिक (भगवान) भी प्रसन्न हो जाते हैं l

श्रेष्ठ भक्त वही है जो दूसरों की भलाई में लगा हुआ है l

जो सबका भला चाहता है वो भगवान के हृदय में स्थान पाता है l

जो दूसरों का भला कर रहा है वह कहीं भी रहे भगवान को पा लेगा l

संसार में दूसरों के लिए जैसा करोगे अपने लोहे भी वैसा हो जायेगा, इस हेतु सदैव दूसरों का भला करो l

जो व्यक्ति अपने स्वार्थ को छोड़ कर दूसरों की भलाई करता है, उसका जीवन ही वास्तव में जीवन है l

जब कभी सेवा का अवसर मिले तो प्रसन्न होना चाहिए कि जैसे भाग्य खुल गया l


धार्मिक पुस्तकें, अच्छे विचारों और सत्संग से बुरा स्वभाव भी अच्छा हो जाता है l
आज के समय में तो मनुष्य पशुओं से भी नीचे गिर रहा है, क्योंकि पशु भी दूसरों के अधिकार की वस्तु नही लेते, मनुष्य तो दूसरों का अधिकार मार रहा है l

हमे कमाई में किसी दूसरे के अधिकार का एक रुपया भी न हो इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए l

1. कुछ करना चाहते हो तो दूसरों की सेवा करो l
2. कुछ जानना चाहते हो तो अपने आप को जानो l
3. मानना चाहते हो तो भगवान को मानो l
तीनो का परिणाम एक ही होगा l

हमे जिस भी व्यक्ति या वस्तु से मोह हो, उसमे भी भगवान को ही देखना चाहिए l

हर समय ये जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हम किसी का बुरा तो नही कर रहे हैं ?


जैसे बच्चा प्रत्येक स्थिति में माँ को ही पुकारता है ऐसी ही भक्त को भी प्रत्येक स्थिति में भगवान को ही पुकारना चाहिए l

जिस काम को बाद में सीधा नही किया जा सके उस उलटे काम को कभी करना नही चाहिए l
सच्ची बात को हमेशा स्वीकार करना चाहिए l

चरित्र की सुन्दरता ही वास्तविक सुन्दरता है l

कितने आश्चर्य की बात है कि भगवान की दी हुई वस्तु अच्छी लगती है परन्तु भगवान अच्छे नही लगते l

जो भगवान, गुरु, ग्रन्थों से डरता है वही सच्चा वीर है l

1.   कोई हमे अपनी ख़ुशी से कोई वस्तु दे तो वह वस्तु दूध जैसी है l

2.   हम किसी वस्तु को मांग कर लें तो वो वस्तु पानी है l

3.   हम किसी वस्तु को छीन कर दूसरों का दिल दुखा कर लें तो वो वस्तु रक्त जैसी है l

जब हम सबकी बात नही मानते तो दूसरा हमारी बात नही मानता तो हमे नाराज नही होना चहिये l




सच्चे धार्मिक व्यक्ति को दुनिया की कोई वस्तु नही चहिये बल्कि दुनिया ही उसके पीछे फिरती है l
धर्म के अनुसार स्वयं चलना ही धर्म का सबसे बड़ा प्रचार है l

धर्म का मूल है:-
स्वार्थ को छोड़ना और दूसरों का भला करना l


भारत में जन्म लेकर भी मनुष्य धर्म में n लगे ये बड़े आश्चर्य और दुःख की बार है क्यूंकि धर्म ही तो भारत की अरमा है, भारत में जन्म मिलना अर्थात भगवान की कृपा होना, भारत में जन्म ही धर्म की प्राप्ति के लिए मिलता है l


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