जिस पर श्रीहरि की कृपा हो जाती है उसके लिये असंभव भी सभव हो जाता है।
लूला-लंगड़ा मनुष्य पर्वत को भी लांघ जाता है। अंधे को गुप्त और प्रकट सबकुछ
देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। बहरा सुनने लगता है। गूंगा बोलने लगता
है
कंगाल राज-छत्र धारण कर लेता हे। ऐसे करूणामय प्रभु की पद-वन्दना कौन
अभागा न करेगा।
“अरी मोरी प्यारी मैया! अब तू ही बता न, कि मेरी यह चोटी कब बढ़ेगी...? तेरे कथन के अनुसार
मुझे दूध पीते हुए कितना समय हो गया.....लेकिन ये चोटी तो अब तक भी वैसी ही छोटी है......अरी
मैया! तू तो कहती थी कि दूध पीने से मेरी यह चोटी दाऊ भैया की चोटी जैसी लंबी व मोटी
हो जाएगी...लेकिन यह तो अभी अभी दाऊ भैया कि चोटी से छोटी है.... संभवत: इसीलिए तू
मुझे नित्य नहलाकर मेरे केशो को कंघी से संवारती है, मेरी चोटी गूंथती है... जिससे चोटी बढ़कर नागिन
जैसी लंबी हो जाए....और मुझे कच्चा दूध भी इसीलिए पिलाती है... अरी मैया ! इस चोटी
के ही कारण तू मुझे माखन व रोटी भी नहीं देती....”
No comments:
Post a Comment