मीराबाई के पद हिंदी अर्थ सहित

1. तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर
 तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं
मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी
और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूँ एक हो जी
हम-सी लाख करोर।।
कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
देस्यूँ प्राण अकोर।।


हिंदी अर्थ-
हे कृष्ण तनिक मेरी ओर भी देखो, मैं देखती हूँ आप नहीं, दिल के बडे कठोर हो। मेरी आशा आपकी दृष्टि है और कोई सहारा नहीं। प्रभु को खडे खडे प्रार्थना करते ही सुबह हो गई है, हे प्रभु आप अविनाशी हो, मैं आपपर प्राण न्यौछावर कर दूंगी।




आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।।टेक।।
चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।
कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ अपने भवन खड़ी।।
कैसे प्राण पिया बिन राखूँ जीवन मूल जड़ी।
मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।।




हे सखी मेरे नैनों को श्री कृष्ण के रूप को देखने की आदत पड गई है, उनकी मधुर रूप हृदय मे अड गया है। मैं कब से अपने भवन खडी उनकी राह देख रही हूँ, वे मेरे जीवन के मूलाधार हैं, मैं तो उनके हाथ बिक गई हूँ, लोग कहते हैं बिगड़ गई हूँ।



पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥


मीरा अपने पैरों मे घुंघरू बांध नाचती हैं, वे प्रभु की दासी हो गई, लोग कहते हैं वे पागल हो गई। रिश्तेदार उनको कुलनाशी कहते हैं, राणा ने उनके लिए विष भेजा जिसे वह हंसते हुए पी गई, मीरा के प्रभु अविनाशी हैं जो उन्हें सहज ही प्राप्त हो गए हैं।


मीराबाई के 10 पद हिंदी अर्थ सहित देखने के लिए उपरोक्त विडियो देखें

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