रहीमदास जी के कुछ दोहे-
रूठे सुजन मनाइये जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिर फिर पोइये टूटे मुक्ताहार।।
अर्थ-
रहीम कहते हैं अगर आपका कोई खास सखा अथवा
रिश्तेदार आपसे नाराज हो गया हैं तो उसे मनाना चाहिए अगर वो सो बार रूठे तो सो बार
मनाना चाहिए क्यूंकि अगर कोई मोती की माला टूट जाती हैं तो सभी मोतियों को एकत्र
कर उसे वापस धागे में पिरोया जाता हैं |
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।|
अर्थ-
रहीम कहते हैं जिस प्रकार मेहँदी लगाने
वालों को भी उसका रंग लग जाता हैं उसी प्रकार पर नर सेवा करने वाले भी धन्य हैं उन
पर नर सेवा का रंग चढ़ जाता हैं |
अमरबेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
‘रहिमन’ ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिए काहि॥2॥
शब्दार्थ / अर्थ : अमरबेलि में जड़ नहीं
होती, बिलकुल
निर्मूल होती है वह; परन्तु प्रभु उसे भी पालते-पोसते रहते हैं। ऐसे प्रतिपालक प्रभु को
छोड़कर और किसे खोजा जाय?
मुनि-नारी पाषान ही, कपि,पशु,गुह मातंग।
तीनों तारे रामजू, तीनों मेरे अंगll
अर्थ : राम ने पाषाणी अहल्या को तार दिया, वानर पशुओं को पार कर दिया और नीच जाति के
उस गुह निषाद को भी! ये तीनों ही मेरे अंग-अंग में बसे हुए हैं– मेरा हृदय ऐसा कठोर है, जैसा पाषाण। मेरी वृत्तियां, मेरी वासनाएं पशुओं की जैसी हैं, और मेरा आचरण नीचतापूर्ण है। तब फिर, तुझे तारने में तुम्हे संकोच क्या हो रहा
है, मेरे
राम!
रहीमदास जी के 50 दोहे हिंदी अर्थ सहित पढने के लिए उपरोक्त विडियो देखें l
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